Thursday, 18 June 2020

महामृत्युञ्जय मन्त्र

                                           

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                  ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।   


                       अर्थ -        हम त्रिनेत्र को पूजते हैं,सुगंधित हैं, हमारा पोषण करते हैंजो,जिस तरह फल, शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है,वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।                 
 
                                    

Saturday, 13 June 2020

शिव_पंचाक्षर महत्व

                                                                                                                                                                                                      शिव पंचाक्षर स्तोत्र

श्रीशिव पंचाक्षर स्तोत्र के पाँचों श्लोकों में क्रमशः न, म, शि, वा और य अर्थात् ‘नम: शिवाय’ है, अत: यह स्तोत्र शिवस्वरूप है–

                                  नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय।
                             नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै ‘न’काराय नम: शिवाय।।


                         मन्दाकिनी सलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
                             मन्दारपुष्पबहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै ‘म’काराय नम: शिवाय।।


                                    शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
                               श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै ‘शि’काराय नम: शिवाय।।


                                     वशिष्ठकुम्भोद्भव गौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चित शेखराय।
                                  चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय तस्मै ‘व’काराय नम: शिवाय।।


                                      यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
                                दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै ‘य’काराय नम: शिवाय।।


                                              पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।
                                               शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

अर्थ–’

जिनके कण्ठ में सांपों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म जिनका अंगराग है और दिशाएं ही जिनका वस्त्र है (अर्थात् जो नग्न है), उन शुद्ध अविनाशी महेश्वर ‘न’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। गंगाजल और चंदन से जिनकी अर्चा हुई है, मन्दार-पुष्प तथा अन्य पुष्पों से जिनकी सुन्दर पूजा हुई है, उन नन्दी के अधिपति, प्रमथगणों के स्वामी महेश्वर ‘म’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। जो कल्याणरूप हैं, पार्वतीजी के मुखकमल को प्रसन्न करने के लिए जो सूर्यस्वरूप हैं, जो दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा में बैल का चिह्न है, उन शोभाशाली नीलकण्ठ ‘शि’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। वशिष्ठ, अगस्त्य और गौतम आदि मुनियों ने तथा इन्द्र आदि देवताओं ने जिनके मस्तक की पूजा की है, चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं, उन ‘व’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। जिन्होंने यक्षरूप धारण किया है, जो जटाधारी हैं, जिनके हाथ में पिनाक है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर देव ‘य’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। जो शिव के समीप इस पवित्र पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त होता है और वहां शिवजी के साथ आनन्दित होता है।

विभिन्न कामनाओं के लिए पंचाक्षर मन्त्र का प्रयोग

विभिन्न कामनाओं के लिए गुरु से मन्त्रज्ञान प्राप्त करके नित्य इसका ससंकल्प जप करना चाहिए और पुरश्चरण भी करना चाहिए।

  • दीर्घायु चाहने वाला गंगा आदि नदियों पर पंचाक्षर मन्त्र का एक लाख जप करे व दुर्वांकुरों, तिल व गिलोय का दस हजार हवन करे।
  • अकालमृत्यु भय को दूर करने के लिए शनिवार को पीपलवृक्ष का स्पर्श करके पंचाक्षर मन्त्र का जप करे।
  • चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय एकाग्रचित्त होकर महादेवजी के समीप दस हजार जप करता है, उसकी सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • विद्या और लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए अंजलि में जल लेकर शिव का ध्यान करते हुए ग्यारह बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके उस जल से शिवजी का अभिषेक करना चाहिए।
  • एक सौ आठ बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके स्नान करने से सभी तीर्थों में स्नान का फल मिलता है।
  • प्रतिदिन एक सौ आठ बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके सूर्य के समक्ष जल पीने से सभी उदर रोगों का नाश हो जाता है।
  • भोजन से पूर्व ग्यारह बार पंचाक्षर मन्त्र के जप से भोजन भी अमृत के समान हो जाता है।
  • रोग शान्ति के लिए पंचाक्षर मन्त्र का एक लाख जप करें और नित्य १०८ आक की समिधा से हवन करें।

‘शिव’ नामरूपी मणि जिसके कण्ठ में सदा विराजमान रहती है, वह नीलकण्ठ का ही स्वरूप बन जाता है। शिव नाम रूपी कुल्हाड़ी से संसाररूपी वृक्ष जब एक बार कट जाता है तो वह फिर दोबारा नहीं जमता। भगवान शंकर पार्वतीजी से कहते हैं कि कलिकाल में मेरी पंचाक्षरी विद्या का आश्रय लेने से मनुष्य संसार-बंधन से मुक्त हो जाता है। मैंने बारम्बार प्रतिज्ञापूर्वक यह बात कही है कि यदि पतित, निर्दयी, कुटिल, पातकी मनुष्य भी मुझमें मन लगा कर मेरे पंचाक्षर मन्त्र का जप करेंगे तो वह उनको संसार-भय से तारने वाला होगा।

भगवान शिव हैं बड़े ‘आशुतोष’। उपासना करने वालों पर वे बहुत शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं फिर जो निष्कामभाव से प्रेमपूर्वक उनको भजते हैं, उनका तो कहना ही क्या? तुलसीदासजी ने कहा है–

                                                      भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ।
                                                      नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ।।

                       शिव पंचाक्षर स्तोत्रजप करें और नित्य १०८ आक की समिधा से हवन करें।


                                                                ! ॐ नमः शिवाय !                                                                                                                               

Tuesday, 9 June 2020

मार्कण्डेय महादेव कथामृत

                     मार्कण्डेय महादेव तीर्थ स्थल
मृगश्रृंग नाम के एक ब्रह्मचारी थे। उनका विवाह सुवृता के संग संपन्न हुआ। मृगश्रृंग और सुवृता के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। उनके पुत्र हमेशा अपना शरीर खुजलाते रहते थे। इसलिए मृगश्रृंग ने उनका नाम मृकण्डु रख दिया। मृकण्डु में समस्त श्रेष्ठ गुण थे। उनके शरीर में तेज का वास था।पिता के पास रह कर उन्होंने वेदों के अध्ययन किया। पिता कि आज्ञा अनुसार उन्होंने मृदगुल मुनि की कन्या मरुद्वती से विवाह किया।
      ✡️  मार्कण्डेय ऋषि का जन्म   ✡️
मृकण्डु जी का वैवाहिक जीवन शांतिपूर्ण ढंग से व्यतीत हो रहा था। लेकिन बहुत समय तक उनके घर किसी संतान ने जन्म ना लिया। इस कारण उन्होंने और उनकी पत्नी ने कठोर तप किया। उन्होंने तप कर के भगवन शिव को प्रसन्न कर लिया। भगवान् शिव ने मुनि से कहा कि,
“हे मुनि, हम तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हैं मांगो क्या वरदान मांगते हो”?
तब मुनि मृकण्डु ने कहा,
“प्रभु यदि आप सच में मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे संतान के रूप में एक पुत्र प्रदान करें”।
भगवन शंकर ने तब मुनि मृकण्डु से कहा की,
“हे मुनि, तुम्हें दीर्घ आयु वाला गुणरहित पुत्र चाहिए। या सोलह वर्ष की आयु वाला गुणवान पुत्र चाहते हो?”
इस पर मुनि बोले,
“भगवन मुझे ऐसा पुत्र चाहिए जो गुणों कि खान हो और हर प्रकार का ज्ञान रखता हो फिर चाहे उसकी आयु कम ही क्यों न हो।”
भगवान् शंकर ने उनको पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गए। समय आने पर महामुनि मृकण्डु और मरुद्वती के घर एक बालक ने जन्म लिया जो आगे चलकर  मार्कण्डेय ऋषि के नाम से प्रसिद्द हुआ।
महामुनि मृकण्डु ने मार्कण्डेय को हर प्रकार की शिक्षा दी। महर्षि मार्कण्डेय एक आज्ञाकारी पुत्र थे। माता-पिता के साथ रहते हुए पंद्रह साल बीत गए। जब सोलहवां साल आरम्भ हुआ तो माता-पिता उदास रहने लगे। पुत्र ने कई बार उनसे उनकी उदासी का कारण जानने का प्रयास किया। एक दिन महर्षि मार्कण्डेय ने बहुत जिद की तो महामुनि मृकण्डु ने बताया कि भगवन शंकर ने तुम्हें मात्र सोलह वर्ष की आयु दी है और यह पूर्ण होने वाली है। इस कारण मुझे शोक हो रहा है।
ऋषि श्री मारकंडेश्वर महादेव इतना सुन कर मार्कण्डेय ऋषि ने अपने पिता जी से कहा कि आप चिंता न करें मैं शंकर जी को मना लूँगा और अपनी मृत्यु को टाल दूंगा। इसके बाद वे घर से दूर एक जंगल में चले गए। वहां एक शिवलिंग स्थापना करके वे विधिपूर्वक पूजा अर्चना करने लगे। निश्चित समय आने पर काल पहुंचा।
महर्षि ने उनसे यह कहते हुए कुछ समय माँगा कि अभी वह शंकर जी कि स्तुति कर रहे हैं। जब तक वह पूरी कर नही लेते तब तक प्रतीक्षा करें। काल ने ऐसा करने से मना कर दिया तो मार्कण्डेय ऋषि जी ने विरोध किया। काल ने जब उन्हें ग्रसना चाहा तो वे शिवलिंग से लिपट गए। इस सब के बीच भगवान् शिव वहां प्रकट हुए। उन्होंने काल की छाती में लात मारी। उसके बाद मृत्यु देवता शिवजी कि आज्ञा पाकर वहां से चले गए।
मार्कण्डेय ऋषि की श्रद्धा और आस्था देख कर भगवन शंकर ने उन्हें अनेक कल्पों तक जीने का वरदान दिया। अमरत्व का वरदान पाकर महर्षि वापस अपने माता-पिता के पास आश्रम आ गए और उनके साथ कुछ दिन रहने के बाद पृथ्वी पर विचरने लगे और प्रभु की महिमा लोगों तक पंहुचाते रहे। श्री मार्कण्डेश्वर मंदिर परिसर धर्मक्षेत्र गंगा गोमती  संगम के तट पर नेशनल हाईवे नंबर 31 के समीप विद्यमान है।