एक दिन आकाशचारी एक गणनायक ने जब गन्धर्वसेना कि बात सुनी तो अहंकार में भरी हुई उस कन्या को उसने श्राप दे दिया-तुम रूप के अभिमान में गंधर्वो और देवताओं का अपमान करती हो अतः तुम्हारा शरीर कोढ़ ग्रस्त हो जाएगा। यह श्राप सुनकर वह कन्या भयभीत हो गई और साष्टांग प्रणाम कर क्षमा की प्रार्थना करने लगी।
उसके विनय से गणनायक को दया आ गई और उसने कहा-यह तुम्हारे घमंड का फल है,इसलिए घमण्ड कभी नही करना चाहिए।हिमालय पर्वत के वन में गोश्रृंग नामक एक परम ज्ञानी श्रेष्ठ मुनि रहते है।वे तुम्हारा कल्याण करेंगे। ऐसा कहकर गणनायक चला गया।
गन्धर्वसेना उस सुंदर वन का परित्याग कर माता-पिता के समीप आई और कोढ़ी होने का सम्पूर्ण वृतांत कह सुनाया। इससे उसके माता पिता शोक संतप्त हो उठे और पुत्री को साथ लेकर हिमालय पर्वत के वन में गये।
वहाँ उन्होंने गोश्रृंग ऋषि का दर्शन करके स्तुति अभिवादन किया तथा उनके सामने ही भूमि पर बैठ गए। ऋषि के पूछने पर गन्धर्वराज ने कहा- 'मुनिश्रेष्ठ! मेरी कन्या का शरीर कुष्ठ रोग से पीड़ित है। जिससे उसे मुक्ति मिले ,वह उपाय बताने की कृपा करें।
गोश्रृंग जी बोले-भारतवर्ष में समुन्द्र के निकट प्रभास(सोमनाथ) क्षेत्र में सर्वदेववन्दित द्वादश ज्योतिर्लिंगो में से एक प्रसिद्ध भगवान सोमनाथ जी का स्वरूप विराजमान है। वहां जाकर मनुष्यों को एक समय का भोजन करते हुए सब रोगों के नाश के लिए सोमनाथ भगवान की पूजा करनी चाहिए। तुम सोमवार के व्रत से भगवान शंकर की आराधना करो,ऐसा करने से तुम्हारी कन्या का रोग दूर हो जाएगा।
मुनिश्रेष्ठ का वचन सुनकर गंधर्वराज ने वहां जाने का निश्चय किया ।गन्धर्वराज अपनी पत्नी के साथ सभी सामग्री लेकर प्रभास (सोमनाथजी)क्षेत्र गए।वे सोमनाथ भगवान का दर्शन करके कृतकृत्य को गए।व्रत के प्रभाव से सोमनाथ जी प्रसन्न होकर कन्या के कुष्ठ रोग को दूर करके सभी कामनाओ को पूर्ण करने वाला गंधर्व देश का राज्य तथा अपनी भक्ति दी।
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