Friday, 17 July 2020

संस्कार



सोलह संस्कार और उनका महत्त्व 
वर्तमान समय में मुख्यतः सोलह संस्कारों को ही मान्यता प्राप्त हैं ।लेकिन गौतम स्मृति में 40 संस्कारो को तथा महर्षि अंगिरा ने ऋग्वेद में 25 संस्कार ,महर्षि वेदव्यास ने व्यासस्मृति में 16 और मनु ने मनुस्मृति में 14 संस्कारो की बात की हैं ।
 
संस्कार मनुष्य के मन के विकार नष्ट करते है और व्यक्तित्व पर अद्वितीय प्रभाव डालता है हिन्दू धर्म में जीवन के विभिन्न अवसरों पर विविध संस्कारो का प्रावधान हैं  यहाँ कहा जाता है कि जन्म से सभी शूद्र होते है संस्कार ही मनुष्य को श्रेष्ठ बनाता हैं। 
                                    
                                   जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद द्विज उच्चते 
सोलह संस्कारो के नाम और उनका महत्त्व 
    1.  गर्भाधान संस्कार                                                                                                                                          दांपत्य जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य हैं श्रेष्ठ गुणों वाली स्वस्थ ,चरित्रवान संतान प्राप्त करना | संतान प्राप्त करने के लिए पति पत्नी को विचारपूर्वक इस कर्म में प्रवृत होना पड़ता हैं | 
                 2. पुंसवन संस्कार                                                                                                                                                               पुंसवन संस्कार गर्भस्थ शिशु के समुचित विकास के लिए किया जाता हैं  कहते है की पुंसवन संस्कार का मुख्य उद्देश्य पुत्र प्राप्ति और स्वस्थ एवं सुन्दर संतान की प्राप्ति। 
 जब तीन माह का गर्भ हो तो लगातार नौ दिन तक सुबह या रात्रि में सोते समय स्त्री पूर्ण श्रद्धा के साथ प्रार्थना करे तो अवश्य मनोवांछित संतान की प्राप्ति होती है। 
                 3 .सीमंतोन्नयन संस्कार 
                                         गर्भ के चौथे ,छठे या आठवे मास में यह संस्कार किया जाता हैं। इसका उद्देश्य गर्भ की शुद्धि होता है। 
                  4 .जातकर्म संस्कार 
                                          जातकर्म संस्कार बच्चे के जन्म पर किया जाता है। यह संस्कार बच्चे के नये घर में स्वागत का प्रतीक हैं। इस संस्कार में पिता बच्चे को शहद चखाता है बच्चे की लम्बे और सुखद जीवन  लिए प्रार्थना करता हैं। 
                  5 .नामकरण संस्कार 
                                            नामकरण संस्कार से आयु तथा तेज की वृद्धि होती है। यह संस्कार शिशु के जन्मोपरांत दस दिन के सूतक की निवृति पर ही किया जाता हैं शिशु का नामकरण किया जाता हैं घर के सभी सदस्य बच्चे के कान में नाम  उच्चारण किया जाता है। 
                   6 .निष्क्रमण संस्कार 
                                                  बच्चे को जब घर से बाहर निकाला जाता है उसको पंचभूतों के अधिष्ठाता देवो का अनुभव एवं स्पर्श कराया जाता है जिसे निष्क्रमण संस्कार कहते है। मनुष्य का शरीर पाँच तत्वों पृथ्वी ,जल,आकाश ,वायु ,तथा अग्नि से बना है। पंचभूतों के दर्शन से बच्चे का शरीर सशक्त और मजबूत होता है। 
                    7 .अन्नप्राशन संस्कार 
                                                  जब बालक 6-8 माह का होता है तो उसे पेय पदार्थ दूध आदि का सेवन कराया जाता है आहारशुद्धौ सत्वशुद्धिः  अर्थात शुद्ध आहार से सतोगुण की वृद्धि होती है। 
                     8 मुंडन संस्कार 
                                           इस संस्कार में बालक का बाल (केश) प्रथम बार उस्तरे से उतरा जाता है। 
तेन ते आयुषे वपामि सुश्लोकाय। अर्थात चूड़ाकर्म से बालक दीर्घयु  प्राप्त है। 
जन्मोपरांत प्रथम या तीसरे वर्ष की समाप्ति से पूर्व यह संस्कार कराया जाता है। मुंडन किसी धर्मस्थान ,तीर्थस्थल या देवालय पर कराया जाता है। 
                       9 कर्णवेध संस्कार 
                                               भद्र कर्णेभिः श्रणुयाम देवा भद्रं  पश्येमाक्षभिर्यजत्राः   कर्णवेध संस्कार 3 या 5 आदि विषम वर्षो में किया जाता है। शुभ मुहूर्त में पवित्र स्थान पर बैठकर पूजा अर्चना उपरांत सूर्यभिमुख होकर शिशु के दोनों कानो को एक-एक करके छेद के बाद कुण्डल पहनाया जाता है 
                      10.विद्यारम्भ संस्कार 
                                                 विद्यारम्भ संस्कार बालक के पाँच वर्ष होने के बाद श्री गणेश और देवी सरस्वती को नमन करके प्रारम्भ कराया जाता है। विद्यारम्भ संस्कार से बालक शिक्षित होता है और माता पिता एवं गुरुजनो का आदर सम्मान करता है 
                      11 .उपनयन संस्कार 
                                                    उपनयन संस्कार या यज्ञोपवीत संस्कार के बाद ही बालक को धार्मिक कार्य अथवा अनुष्ठान करने का अधिकार प्राप्त होता है। मातुराग्राधिजनानं  द्वितीय  मौनिजबन्धने  अर्थात प्रथम जन्म माता के उदर से होता है और द्वितीय जन्म यज्ञोपवीत धारण से होता। 
                       12 .वेदारम्भ संस्कार 
                                                     हिन्दू धर्म दर्शन के अनुसार उपनयन संस्कार हो  के बाद ही विद्यार्थी को वेद पढ़ने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इस संस्कार में वेद पारंगत गुरु शिष्य को वैदिक रीति से वेदो का पाठन प्रारम्भ करवाते है। 
                       13 .केशान्त संस्कार 
                                                    जैसा की नाम से स्पष्ट हो रहा है इस संस्कार में जब बालक वेद पढ़ने जाता था तो उसे अपने नाख़ून ,बाल ,दाढ़ी बनाने  अनुमति नहीं होती थी वेद पठन के बाद बालक को शुभ मुहूर्त पर आचार्य के अनुमति से केशान्त संस्कार किया जाता हैं। 
                        14 .समावर्तन संस्कार 
                                                        युवा सुवासः परिवीत आगात  सु श्रेयांन  भक्ति जायमानः। 
                                                         त  धिरास ः  कवय उन्नयन्ति स्वाध्यो  उ मनसा देवयन्तः। 
अर्थात युवा पुरुष उत्तम वस्त्रो को धारण किए हुए ,सब विद्या ,से प्रकाशित ब्रह्मचारी के रूप से निकल जब गृहाश्रम में आता है तब वह प्रसिद्ध हो कर श्रेय ,मंगलकारी शोभायुक्त होता हैं। उसे धीर ,बुद्धिमान विद्वान् अच्छे ध्यान मन से विद्या प्रकाश की कामना करते हुए ऊंचे पद पर बैठाते है। 
                        15 .विवाह संस्कार 
                                                  भविष्य पुराण कहता  है कि विवाह संस्कार सात पूर्वजो व् सात वंशजो को नरक भोग से बचा लेता हैं। विवाह संस्कार से सन्तानोत्पादन कर परिवार और समाज नींव डालता है। 
                                                     दश पूर्वान परान्वंश्यान  आत्मनं चैकविंशकम। 
                                                      ब्राहीपुत्रः सुकृतकृन मोचये देनसः पितृन ः। 
                         16 .अंत्येष्टि संस्कार 
                                                      वायुरनिलममृतमथेदं  भस्भांतं शरीरम। 
                                                      ओम क्रतो स्मर ,क्लिबे स्मर ,कृतं स्मर। 
  अर्थात हे कर्मशील जीव तू शरीर छूटते समय परमात्मा के श्रेष्ठ व् मुख्य नाम ॐ का स्मरण कर। प्रभु को याद कर। शरीर में आने जाने वाली वायु अमृत है परन्तु भौतिक शरीर भस्म पर्यन्त है। भस्मांत होने वाली है। ..

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