घृणा लज्जा भयं शंका जुगुप्सा चेति पञ्चमी। कुलं शीलं तथा जातिरष्टौ पाशाः प्रकीर्तिताः।। पाशबद्धो भवेज्जीवः पाशमुक्तः सदाशिवः।।
Thursday, 23 July 2020
श्री हनुमान- चालीसा
Friday, 17 July 2020
संस्कार
- गर्भाधान संस्कार दांपत्य जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य हैं श्रेष्ठ गुणों वाली स्वस्थ ,चरित्रवान संतान प्राप्त करना | संतान प्राप्त करने के लिए पति पत्नी को विचारपूर्वक इस कर्म में प्रवृत होना पड़ता हैं |
Wednesday, 15 July 2020
सोलह महादान एवम दस मेरु दान व दस धेनु दान
सोलह महादानो एवम दस महादान व दस धेनु दान का वर्णन आग्नेय पुराण के महादानों का वर्णन नामक अध्याय में किया गया है
सोलह महादान
- तुलापुरुष दान
- हिरण्यगर्भ दान
- ब्रम्हाण्ड दान
- कल्पवृक्ष दान
- सहस्र गोदान
- स्वर्णमयी कामधेनु दान
- स्वर्णमय अश्व दान
- स्वर्णमय अश्व रथ दान
- स्वर्णमय हस्तिरथ दान
- हल दान
- भूमिदान
- विश्वचक्र दान
- कल्पलता दान
- सप्तसमुद्र दान
- रत्नधेनु दान
- जलपूर्ण कुम्भ दान दस मेरुदान (पर्वत )
- धान्यमेरु
- लवणाचल
- गुड़ पर्वत
- स्वर्ण मेरु
- तिल पर्वत
- कार्पास पर्वत (रुई )
- घृताचल
- रजत पर्वत
- शर्कराचल
- गुड़धेनु
- घृतधेनु
- तिलधेनु
- जलधेनु
- क्षीरधेनु
- मधुधेनु
- शर्कराधेनु
- दधिधेनु
- रसधेनु
- कृष्णाजिनधेनु
Tuesday, 14 July 2020
वाराणसी महात्म्य(VARANASI GREATNESS)
सोमवार व्रत
Markandeya Mahadev Shrine
Tuesday, 7 July 2020
Thursday, 18 June 2020
महामृत्युञ्जय मन्त्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।
Saturday, 13 June 2020
शिव_पंचाक्षर महत्व
शिव पंचाक्षर स्तोत्र
श्रीशिव पंचाक्षर स्तोत्र के पाँचों श्लोकों में क्रमशः न, म, शि, वा और य अर्थात् ‘नम: शिवाय’ है, अत: यह स्तोत्र शिवस्वरूप है–
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै ‘न’काराय नम: शिवाय।।
मन्दाकिनी सलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मन्दारपुष्पबहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै ‘म’काराय नम: शिवाय।।
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै ‘शि’काराय नम: शिवाय।।
वशिष्ठकुम्भोद्भव गौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चित शेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय तस्मै ‘व’काराय नम: शिवाय।।
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै ‘य’काराय नम: शिवाय।।
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
अर्थ–’
जिनके कण्ठ में सांपों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म जिनका अंगराग है और दिशाएं ही जिनका वस्त्र है (अर्थात् जो नग्न है), उन शुद्ध अविनाशी महेश्वर ‘न’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। गंगाजल और चंदन से जिनकी अर्चा हुई है, मन्दार-पुष्प तथा अन्य पुष्पों से जिनकी सुन्दर पूजा हुई है, उन नन्दी के अधिपति, प्रमथगणों के स्वामी महेश्वर ‘म’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। जो कल्याणरूप हैं, पार्वतीजी के मुखकमल को प्रसन्न करने के लिए जो सूर्यस्वरूप हैं, जो दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा में बैल का चिह्न है, उन शोभाशाली नीलकण्ठ ‘शि’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। वशिष्ठ, अगस्त्य और गौतम आदि मुनियों ने तथा इन्द्र आदि देवताओं ने जिनके मस्तक की पूजा की है, चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं, उन ‘व’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। जिन्होंने यक्षरूप धारण किया है, जो जटाधारी हैं, जिनके हाथ में पिनाक है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर देव ‘य’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है। जो शिव के समीप इस पवित्र पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त होता है और वहां शिवजी के साथ आनन्दित होता है।
विभिन्न कामनाओं के लिए पंचाक्षर मन्त्र का प्रयोग
विभिन्न कामनाओं के लिए गुरु से मन्त्रज्ञान प्राप्त करके नित्य इसका ससंकल्प जप करना चाहिए और पुरश्चरण भी करना चाहिए।
- दीर्घायु चाहने वाला गंगा आदि नदियों पर पंचाक्षर मन्त्र का एक लाख जप करे व दुर्वांकुरों, तिल व गिलोय का दस हजार हवन करे।
- अकालमृत्यु भय को दूर करने के लिए शनिवार को पीपलवृक्ष का स्पर्श करके पंचाक्षर मन्त्र का जप करे।
- चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय एकाग्रचित्त होकर महादेवजी के समीप दस हजार जप करता है, उसकी सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं।
- विद्या और लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए अंजलि में जल लेकर शिव का ध्यान करते हुए ग्यारह बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके उस जल से शिवजी का अभिषेक करना चाहिए।
- एक सौ आठ बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके स्नान करने से सभी तीर्थों में स्नान का फल मिलता है।
- प्रतिदिन एक सौ आठ बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके सूर्य के समक्ष जल पीने से सभी उदर रोगों का नाश हो जाता है।
- भोजन से पूर्व ग्यारह बार पंचाक्षर मन्त्र के जप से भोजन भी अमृत के समान हो जाता है।
- रोग शान्ति के लिए पंचाक्षर मन्त्र का एक लाख जप करें और नित्य १०८ आक की समिधा से हवन करें।
‘शिव’ नामरूपी मणि जिसके कण्ठ में सदा विराजमान रहती है, वह नीलकण्ठ का ही स्वरूप बन जाता है। शिव नाम रूपी कुल्हाड़ी से संसाररूपी वृक्ष जब एक बार कट जाता है तो वह फिर दोबारा नहीं जमता। भगवान शंकर पार्वतीजी से कहते हैं कि कलिकाल में मेरी पंचाक्षरी विद्या का आश्रय लेने से मनुष्य संसार-बंधन से मुक्त हो जाता है। मैंने बारम्बार प्रतिज्ञापूर्वक यह बात कही है कि यदि पतित, निर्दयी, कुटिल, पातकी मनुष्य भी मुझमें मन लगा कर मेरे पंचाक्षर मन्त्र का जप करेंगे तो वह उनको संसार-भय से तारने वाला होगा।
भगवान शिव हैं बड़े ‘आशुतोष’। उपासना करने वालों पर वे बहुत शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं फिर जो निष्कामभाव से प्रेमपूर्वक उनको भजते हैं, उनका तो कहना ही क्या? तुलसीदासजी ने कहा है–
भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ।।
शिव पंचाक्षर स्तोत्रजप करें और नित्य १०८ आक की समिधा से हवन करें।